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Saturday, December 13, 2014

अज़ीज़ जौनपुरी : सूनी सेज तुम्हरि बिन साजन






कहाँ   गयो  मेरो   प्रीतम    प्यारे
अँखियाँ   रोअत    साँझ    सकारे
सूनी  सेज  तुम्हरि बिन   साजन
कब   होइहीं   धन    भाग  हमारे


बहुत   दिनन  से  अँखियाँ  तरसत
कहाँ   छुप  गए  मेरो साजन प्यारे
छतिया  बिच  अगिया  दहकत  हैं
घिर  - घिर   आवत    बदरा   कारे 

दरस  परस  बिन अँखियाँ  रोअत
कब   आओगे    मेरो मोहन प्यारे
मन  मंदिर में बस  तुम्हरी सूरत
तुम  बिन  जीवन भयो  अंधियारे

कबिरा तोहे  संग  व्याह  रचायो
संग सातव  बचन  पढ़ायो  प्यारे
निरखत अँखियाँ रोअत अँखियाँ
अब आ भी  जाओ  मोहन प्यारे

सेजिया     सूनी    मंगिया  सूनी
कबीरा   रोअत   दिलवा   उघारे
केहि सवतन संग सेजिया सोवत
काहे      फूटल       भाग    हमारे

न   मरती   आस   न  जाती सांस
रोवत      कबिरा    द्वारे -   द्वारे
मन-मन्दिर माँहि भयो अँधियारा
दे  दरस  परस  कर  दो   उजियारे

उघारे --खोल कर
धन भाग -- भाग्य का धन्य होना
केही --किस
माँह--के भीतर 
काहे--किसलिए                       अज़ीज़ जौनपुरी




2 comments:

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