Pages

Tuesday, December 23, 2014

अज़ीज़ जौनपुरी : मिलन की घड़ी में प्रणय दीप पावन





 मिलन की घड़ी में प्रणय दीप पावन 
 तुम्हीं  ने जलाए  तुम्हीं  नें बुझाए 
 लिखी थी कहानी कहीं इक शिला पर 
 समय के बवंडर नें जिसको मिटाए

 छिन गई सारी खुशियाँ जीवन की अपने 
 चादर तिमिर की किसी ने उढाए
 चमन में न तितली दिखती कहीं भी 
 तूफ़ा ने कितने कहर ज़ुल्म ढाए

 इक तस्बीर आँखों में उभरी थी कोई 
 समय के थपेड़ो ने जिसको मिटाए 
 ख्वाहिशें चूमने के धरी रह गईं 
 वक्त नें भी न जाने सितम कितनें ढाए

 इक लिखी थी कहानी आँसुओं को पिरोकर
 जिसको अपनों  नें खारा समंदर बताए
 पर लगा कर उड़ा था गगन चूमनें मैं 
 काट मेरे परों को किसी नें गिराए 

 बन शलभ दीप पर जब मिटने चला 
 दिए प्यार के किसी नें बुझाए 
 माँगी थी मिटटी से महक जिंदगी की 
 बिकल प्राण मेरे किसी नें उड़ाए
 
 प्रणय की डगर पर जब बढे पाँव मेरे 
 किसी नें डगर पर कांटें बिछाए 
 उठा शूल बक्ष में जब अपनें चुभोया 
 लहू को किसी नें पानी बताए 
 
 अर्चना प्यास में छटपटाती रही 
 बंदना के सकल स्वर किसी नें मिटाए 
 उजालों का स्वागत जब करने बढ़ा 
 तिमिर को धरा पर किसी नें बुलाए

 ले चला थाल में जब पुष्प अर्चना के 
 सकल पुष्प थाली के किसी ने गिराए 
 जब उठा पुष्प मैंने लगाया ह्रदय से 
 श्याम मेघो ने कितने बिजली गिराए  

 मधुर मुस्कान मेरी कहीं  खो गई 
 मैनें सपनों में कितने आंसू बहाए 
 डोर उम्मीद की पकड़ मैं जब निकला  
 प्रणय पथ पर किसी नें तुहिन कण बिछाए 

                 अज़ीज़ जौनपुरी

1 comment:

  1. Love to read it, Waiting For More new Update and I Already Read your Recent Post its Great Thanks.

    ReplyDelete